“युद्ध नहीं, उद्देश्य चाहिए: पाकिस्तान को समझदारी से साधने की रणनीति”

कर्नल जी.एम. ख़ान, सेना मेडल (वीरता)
हर आतंकी हमले के बाद देशभर में ग़ुस्सा फूटता है। सोशल मीडिया पर अक्सर एक आवाज़ गूंजती है- “पाकिस्तान को खत्म कर दो!” यह ग़ुस्सा स्वाभाविक है, लेकिन हमें खुद से भी एक सवाल पूछना चाहिए- क्या हम वाकई जानते हैं कि इसका अर्थ क्या है?
क्या हमारा तात्पर्य यह है कि हम पाकिस्तान पर लड़ाकू जहाज़, टैंकों व समुद्री रास्ते से हमला कर दें, उसकी सेना को घेर लें और पूरे देश पर कब्ज़ा कर लें? यदि ऐसा हो भी जाए, तो क्या हम उन 30 करोड़ लोगों को संभाल पाएंगे, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा भारत का कट्टर विरोधी है?
या फिर हम चाहते हैं कि पाकिस्तान पर परमाणु हमला कर उसे मिटा दिया जाए? यह न केवल अमानवीय है, बल्कि भारत जैसे नैतिक और लोकतांत्रिक देश की मूल विचारधारा से भी परे है।
कुछ लोग कहते हैं कि पाकिस्तान को पांच टुकड़ों में बाँट दो। लेकिन पाकिस्तान कोई फर्नीचर नहीं है, जिसे मनचाहे तरीके से तोड़ा या जोड़ा जा सके। उनकी सरकार जैसी भी हो, लेकिन उनकी सेना और प्रशासन आज भी मज़बूत हैं और देश को टूटने से बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, खासकर सेना।
हम बड़े सैन्य हमलों की बातें करते हैं- हवाई अड्डों, सैन्य ठिकानों और बंदरगाहों पर बमबारी की। लेकिन अगर ऐसा हुआ, तो पाकिस्तान के पास एकमात्र रास्ता बचेगा- परमाणु हमला। क्या हम इसके परिणामस्वरूप अपने करोड़ों नागरिकों की जान जोखिम में डालने को तैयार हैं?
युद्ध कोई रंगमंच नहीं है। यह राजनीति का एक चरम रूप है, और बिना स्पष्ट उद्देश्य के युद्ध केवल तबाही लाता है।
ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारत ने दो प्रमुख उद्देश्य पूरे किए:
1. पाकिस्तान को यह सख्त संदेश देना कि हम आतंकियों को कहीं भी मार सकते हैं – यहाँ तक कि उनके घर में घुसकर भी।
2. और यदि वे पलटवार करते हैं, तो भारत और अधिक ताकत से जवाब देने को तैयार है।
इस ऑपरेशन में हमने 200 से अधिक आतंकियों को मार गिराया, उनके अनेक आतंकी ठिकानों को नष्ट किया, और उनकी वायुसेना को निष्क्रिय कर दिया। तीन दिन तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय में किसी ने भी हमें “संयम बरतो” जैसी सलाह नहीं दी – यह हमारी सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत थी।
और सबसे अहम बात – भारत को अब यह नैतिक और सामरिक अधिकार प्राप्त हो चुका है कि हर आतंकी हमले का जवाब तुरंत और सटीक तरीके से दिया जाए।
आज भारत को युद्ध नहीं, बल्कि विकास की लड़ाई लड़नी है। हमें अपने 80 करोड़ युवाओं के लिए रोज़गार, तकनीक और आत्मनिर्भरता के अवसर पैदा करने हैं। पाकिस्तान अब हमारी प्राथमिकता नहीं है – वह केवल एक रुकावट है, जिससे निपटने की नीति हम तय कर चुके हैं।
वास्तविक विजय वही होती है जो बिना बम-बंदूक के डर पैदा कर दे – और वह हम कर चुके हैं।