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विदेशों में भी भारतीय शिक्षा के भगीरथ

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शिक्षा क्षेत्र के लोग भी करीब एक साल पहले भारतीय विश्वविद्यालय संघ यानी एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) को नहीं जानते होंगे, लेकिन अब स्थितियां अलग हैं। भारत ही नहीं विश्व के तमाम प्रमुख देशों में संघ का डंका है। वर्तमान अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पाठक के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नवाचार का स्वर्णिम युग शुरू हुआ है।

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली वैश्विक मंच पर जिस गति से उभर रही है, उसमें संघ का योगदान एक मील का पत्थर सिद्ध हो रहा है। अभी तक देश के सात विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में प्रो. पाठक ने शिक्षा क्षेत्र में बहुआयामी परिवर्तन लाकर भारत की अकादमिक प्रतिष्ठा को अंतरराष्ट्रीय फलक पर स्थापित किया है। और क्रान्तिकारी बदलाव की यही प्रक्रिया इस संघ में चल रही है। उनके कार्यकाल में एआईयू ने न केवल देश के विश्वविद्यालयों को सशक्त किया, बल्कि उन्हें दुनिया के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों और संस्थानों से भी जोड़ा। वर्तमान में छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रो. पाठक नेतृत्व में भारत ने शिक्षा को एक डिप्लोमैटिक टूल के रूप में प्रयोग करना शुरू किया, जो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को साकार करता है। वियतनाम, स्पेन, ब्रिटेन, अमेरिका, और अरब देशों के विश्वविद्यालय संघों से हुए बहुपक्षीय समझौतों ने भारत को वैश्विक शिक्षा के मानचित्र पर मजबूती से स्थापित किया। वियतनाम के विश्वविद्यालय संघ के साथ हुए समझौते के तहत ‘नमस्ते वियतनाम’ जैसे बड़े शिक्षा आयोजनों की परिकल्पना और क्रियान्वयन हुआ, जिसमें न केवल शैक्षणिक संवाद हुए बल्कि सांस्कृतिक विनिमय को भी बल मिला।

स्पेन की सीआईयूई यूनिवर्सिडेड्स और राष्ट्रमंडल देशों की प्रतिष्ठित संस्था एसीयू के साथ हुए समझौते भारत और इन देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूती प्रदान करने वाले कदम थे। एआईयू की पहल पर भारतीय विश्वविद्यालयों को वैश्विक नेटवर्क से जोड़कर स्टूडेंट और फैकल्टी एक्सचेंज, रिसर्च कोलैबरेशन और जॉइंट डिग्री प्रोग्राम्स की दिशा में अभूतपूर्व कार्य हुआ। ब्रिटेन के भारतीय छात्रों के संगठन एनआईएसएयू के साथ हुआ समझौता एक रणनीतिक पहल थी, जिसका उद्देश्य भारतीय शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए आकर्षक बनाना था। अमेरिका की संस्था एफ
एडीफाआई ऑनलाइन और अरब विश्वविद्यालय संघ के साथ हुए करारों ने भारत को डिजिटल लर्निंग, संयुक्त पाठ्यक्रम, और मल्टी-नेशनल अकादमिक वेंचर्स की दिशा में अग्रणी भूमिका दिलाई। प्रो. पाठक केवल करारों तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने भारतीय विश्वविद्यालयों को नवाचार केंद्रों में बदलने की दिशा में योजनाबद्ध ढंग से काम किया। उनकी सोच थी कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं, बल्कि छात्र में सोचने, सृजन करने और समाज के लिए योगदान देने की क्षमता का निर्माण करना है। इसी उद्देश्य से उन्होंने इनोवेशन हब्स, स्टार्टअप इनक्यूबेशन सेंटर्स और इंडस्ट्री लिंक्ड इंटर्नशिप प्रोग्राम्स को प्रोत्साहित किया। उन्होंने शिक्षा को रोजगारपरक बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों जैसे एआई, डेटा साइंस, ग्रीन टेक्नोलॉजी, फिनटेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में नए कोर्स शुरू करवाए, जिससे भारतीय छात्र वैश्विक नौकरियों के लिए तैयार हो सकें। उनके कार्यकाल में इंटर-डिसिप्लिनरी स्टडीज़ और लाइफ स्किल ट्रेनिंग को भी पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया गया।प्रो. पाठक एक ऐसे शिक्षाविद् हैं जो प्रशासनिक कुशलता, शैक्षणिक गहराई और मानवीय संवेदना, तीनों के समन्वय का उदाहरण हैं। उन्होंने यह बार-बार सिद्ध किया कि एक संस्थान का विकास केवल भवनों से नहीं, बल्कि दृष्टिकोण से होता है। वे छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं और उन्हें हमेशा प्रोत्साहन, अवसर और मार्गदर्शन देने में अग्रणी रहे हैं। उनकी प्रेरणा से कई विश्वविद्यालयों ने डिजिटल रूपांतरण, ई-गवर्नेंस और इको-फ्रेंडली कैम्पस जैसी पहलों को अपनाया। उनके विजन के अनुसार विश्वविद्यालयों को भविष्य के लिए ‘स्मार्ट एजुकेशन सिस्टम्स’ में परिवर्तित करना चाहिए जो वैश्विक मानकों पर खरे उतरें।

प्रोफेसर पाठक का नेतृत्व एआईयू के लिए एक परिवर्तनकारी दौर रहा है। उन्होंने उच्च शिक्षा को न केवल भारत के भीतर सशक्त किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत को एक ज्ञान महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की नींव रखी। उनके विचार, योजनाएँ और क्रियान्वयन इस बात का प्रमाण हैं कि जब कोई शिक्षाविद् व्यवस्था के केंद्र में आता है, तो शिक्षा एक आंदोलन बन जाती है। भारतीय विश्वविद्यालय संघ के इतिहास में उनका कार्यकाल वैश्विक दृष्टि, नवाचार, सहयोग और समावेशिता का प्रतीक बन गया है, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत भी।

(लेखक शिक्षाविद हैं।)

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