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1984 के सिख विरोधी दंगे: सज्जन कुमार की भूमिका और दंगों की दास्तां

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नई दिल्ली। 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके सुरक्षा गार्डों ने कर दी थी। इस हत्याकांड के बाद दिल्ली समेत देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे, जिसमें कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और कई को बेघर होना पड़ा। इन दंगों में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार की भूमिका पर बाद में मुकदमे चले और उन्हें दोषी ठहराया गया।

इंदिरा गांधी की हत्या और दंगे की शुरुआत

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर, 1984 को नई दिल्ली के सफदरगंज रोड स्थित उनके आवास पर सुबह 9:30 बजे की गई थी। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उनके अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मार कर उनकी हत्या की थी। इसके बाद ही दिल्ली समेत देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे।

एम्स के आसपास भीड़ और हिंसा

31 अक्टूबर को दोपहर तक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के आसपास भीड़ जमा होने लगी थी। भीड़ ने खून के बदले खून के नारे लगाने शुरू कर दिए। शाम पांच बजे के आसपास तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह अस्पताल पहुंचे और भीड़ ने उनकी कार पर पथराव कर दिया। इसने सिखों के साथ मारपीट शुरू कर दी, कारों और बसों को रोककर सिखों को बाहर निकाला और उन्हें जिंदा जला दिया। कई सिख मारे गए। लेकिन उसी रात और 1 नवंबर की सुबह माहौल एकदम खूनी हो गया।

सज्जन कुमार की भूमिका

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने स्थानीय समर्थकों के साथ पैसे और हथियार बांटे। उस समय के कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार और ट्रेड यूनियन नेता ललित माकन ने हमलावरों को 100-100 रुपए के नोट और शराब की बोतलें सौंपी। 1 नवंबर की सुबह सज्जन कुमार को पालम कॉलोनी, किरण गार्डन और सुल्तानपुरी के दिल्ली के मोहल्लों में रैलियां करते हुए देखा गया।

लोहे की छड़ें बांटीं और हिंसा भड़काई

सुबह 9 बजे तक किरण गार्डन में सज्जन कुमार को एक ट्रक से 120 लोगों के समूह में लोहे की छड़ें बांटते हुए और उन्हें सिखों पर हमला करने, उन्हें मारने-लूटने और उनकी संपत्ति को जलाने को कहा गया। सुबह के दौरान उन्होंने पालम रेलवे रोड के साथ मंगोलपुरी में एक भीड़ का नेतृत्व किया, जहां भीड़ ने कहा- “सरदारों को मार डालो और ‘इंदिरा गांधी हमारी मां हैं और इन लोगों ने उन्हें मार डाला है।'”

सज्जन कुमार का भाषण

लेखिका जसकरण कौर की सिख दंगों पर लिखी किताब “Twenty years of impunity: the November 1984 pogroms of Sikhs in India” में सिखों के खिलाफ क्रूर हिंसा की एक बानगी दी गई है। सुल्तानपुरी में मोती सिंह (20 साल से सिख कांग्रेस पार्टी के सदस्य) ने सज्जन कुमार के उस दिन के भाषण का जिक्र किया है- “जो भी संपोलों को मारेगा, मैं उन्हें इनाम दूंगा। जो कोई भी रोशन सिंह और बाघ सिंह को मारता है, उसे हर एक को 5,000 रुपए और किसी दूसरे सिख को मारने के लिए 1,000 रुपए मिलेंगे। आप तीन नवंबर को मेरे निजी सहायक जय चंद जमादार से ये पुरस्कार ले सकते हैं।”

दिल्ली पुलिस की भूमिका

किताब के अनुसार, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने अदालत को बताया कि दंगे के दौरान सज्जन कुमार ने कहा कि ‘एक भी सिख जीवित नहीं रहना चाहिए।’ CBI ने दिल्ली पुलिस पर दंगे के दौरान अपनी ‘आंखें बंद’ रखने का आरोप लगाया, जिसे योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था। शकरपुर मोहल्ले में कांग्रेस पार्टी के नेता श्याम त्यागी के घर को एक अनिर्दिष्ट लोगों की संख्या के लिए एक सभा स्थल के रूप में इस्तेमाल किया गया था। सूचना और प्रसारण मंत्री एच के एल भगत ने बोप त्यागी (त्यागी के भाई) को पैसे देते हुए कहा- “ये दो हजार रुपए शराब के लिए रखो और जैसा मैंने तुम्हें बताया है … तुम्हें इसकी बिल्कुल भी चिंता नहीं है। मैं सब कुछ देख लूंगा।”

राशन की दुकान पर भीड़ जुटाई

31 अक्टूबर की रात के दौरान बलवान खोखर (हत्याकांड में फंसे एक स्थानीय कांग्रेस पार्टी के नेता) ने पालम में पंडित हरकेश की राशन की दुकान पर एक बैठक की। कांग्रेस पार्टी के समर्थक शंकर लाल शर्मा ने एक बैठक की, जहां उन्होंने 1 नवंबर को सुबह 08:30 बजे अपनी दुकान में सिखों को मारने के लिए एक भीड़ जुटाई।

केरोसिन के डिब्बे और हिंसा

सिख विरोधी दंगों में जिस भीड़ को भड़काया गया, उसका मुख्य हथियार केरोसिन के डिब्बे ही थे। इन डिब्बों की आपूर्ति कांग्रेस के नेताओं के एक समूह ने की थी। सुल्तानपुरी में कांग्रेस पार्टी ए -4 ब्लॉक अध्यक्ष ब्रह्मानंद गुप्ता ने तेल बांटे। वहीं, सज्जन कुमार ने भीड़ को सिखों को मारने, और उनकी संपत्तियों को लूटने और जलाने का निर्देश दिया। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट स्टूडेंट असीम श्रीवास्तव ने मिश्रा आयोग को सौंपे गए एक हलफनामे में मॉब के बारे में ब्यौरा दिया है।

केरोसिन तेल ऑटोरिक्शा में भर-भरकर जा रहे थे

मिश्रा आयोग के समक्ष दिए गए इस ब्यौरे के अनुसार- “हमारे इलाके में सिखों और उनकी संपत्ति पर हमला एक अत्यंत संगठित मामला है … मोटरसाइकिल पर कुछ युवा लोग भी थे, जो मॉब्स को निर्देश दे रहे थे और समय-समय पर उन्हें मिट्टी के तेल की आपूर्ति कर रहे थे। कुछ मौकों पर हमने ऑटो-रिक्शा को केरोसिन तेल और अन्य ज्वलनशील पदार्थों जैसे जूट के बोरों के साथ पहुंचते देखा।”

नानावटी आयोग की रिपोर्ट

सिख दंगों की जांच के लिए गठित नानावटी आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ दिल्ली में 587 मामले दर्ज हुए थे। जिनमें 2733 लोग मारे गए थे। कुल मामलों में से करीब 240 मामले बंद हो गए, जबकि 250 मामलों में आरोपी बरी हो गए थे। दिल्ली सरकार ने 17 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह सिख दंगों के 6 मामलों में बरी आरोपियों के खिलाफ याचिका दायर करेगी।

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