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“प्रवासियों पर प्रतिबंध: अमेरिका की विविधता और समृद्धि के लिए खतरा?”

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा गैर-कानूनी प्रवासियों के खिलाफ छेड़ी गई जंग के कारण भारत समेत कई देशों में हलचल मच गई है। कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज के बाद से यह देश विविध संस्कृतियों और लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। एल डोराडो के रूप में पहचाने जाने वाले इस देश में गोल्ड रश भी हुआ, लेकिन अब ऐसा लगता है कि प्रवासियों के लिए अमेरिका जाना आसान नहीं रह गया है।

अमेरिका का इतिहास प्रवासियों के बिना अधूरा है। यूरोप और अफ्रीका से आए लोगों ने इस देश को सदियों में गढ़ा है। सिलिकॉन वैली की तकनीकी क्रांति से लेकर चिकित्सा अनुसंधान तक, वैश्विक व्यंजनों से लेकर कलात्मक उत्कृष्टता तक, प्रवासियों ने अमेरिका की समृद्धि और वैश्विक पहचान को मजबूत किया है। लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प की अप्रवास-विरोधी नीतियों ने इस विविधता को खतरे में डाल दिया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवासन पर प्रतिबंध लगाने से अमेरिका न केवल प्रतिभा के दरवाजे बंद कर रहा है, बल्कि अपनी ही सफलता के इंजन को कमजोर कर रहा है। अप्रवासियों द्वारा निर्मित यह देश अपनी विरासत को नकारने का जोखिम नहीं उठा सकता। जो देश प्रवासन को अपनाते हैं, वे फलते-फूलते हैं, जबकि जो इसका विरोध करते हैं, वे पिछड़ जाते हैं।

इतिहास गवाह है कि प्रवासन ने अनेकों मुल्कों , सभ्यताओं, अर्थव्यवस्थाओं और संस्कृतियों को आकार दिया है। 1948 में इज़राइल की स्थापना ने होलोकॉस्ट से बचे यहूदियों को एक नई जीवन दी और उसकी तीव्र आर्थिक प्रगति में मदद की। इसी तरह, 1947 के विभाजन के बाद भारत में पंजाबी और सिंधी समुदायों ने दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया। राजस्थान के मारवाड़ी व्यापारियों ने पूरे भारत में अपनी उद्यमशीलता का परचम लहराया।

मध्य एशिया से आए समूहों ने भारत में नई संस्कृतियाँ, प्रौद्योगिकियाँ और शासन प्रणालियाँ लाईं, जिन्होंने व्यापार और विजय के माध्यम से इतिहास को आकार दिया। प्रवासन ने न केवल अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा दिया।

अमेरिका की सफलता की कहानी प्रवासियों की कहानी है। 19वीं और 20वीं सदी में लाखों लोग यूरोप, एशिया और लैटिन अमेरिका से अमेरिका आए। उन्होंने न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, बल्कि इसकी सांस्कृतिक विविधता को भी समृद्ध किया। सिलिकॉन वैली में प्रवासियों ने तकनीकी नवाचारों को आगे बढ़ाया, जबकि चिकित्सा और विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान ने अमेरिका को वैश्विक नेता बनाया।

प्रो. पारस नाथ चौधरी के अनुसार, “प्रवास मानव इतिहास का अभिन्न अंग है। यह न केवल व्यक्तियों को नई संभावनाएं प्रदान करता है, बल्कि समाजों को समृद्ध और प्रगतिशील बनाता है। प्रवासन लोगों को सीमित संसाधनों, सामाजिक ठहराव और दमनकारी शासन से मुक्ति दिलाता है। यह “कुएं के मेंढक” सिंड्रोम को तोड़ता है और व्यक्तियों को वैश्विक समाज में योगदान देने का अवसर प्रदान करता है। अर्थशास्त्री जॉन केनेथ गैलब्रेथ ने प्रवासन को मानवीय दुखों को दूर करने का शक्तिशाली उपकरण बताया है। “

प्रवासी न केवल अपने कौशल और लचीलापन लाते हैं, बल्कि मेजबान देशों की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करते हैं। वे अक्सर ऐसे काम करते हैं जिन्हें स्थानीय आबादी अनदेखा कर सकती है, जिससे कृषि से लेकर तकनीक तक के उद्योगों का सुचारू संचालन सुनिश्चित होता है।
समाजवादी विचारक राम किशोर कहते हैं, “प्रवास को अपनाने वाले शहर सांस्कृतिक आदान-प्रदान और रचनात्मकता के केंद्र बन जाते हैं। यह समाज में सामंजस्य और समझ को बढ़ावा देता है। प्रवासी समुदायों ने अमेरिका में विविध व्यंजनों, कला और संगीत को लाकर इसकी सांस्कृतिक पहचान को समृद्ध किया है।”

सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ता गुप्ता का कहना है, “प्रवासन को समृद्धि और सांस्कृतिक समृद्धि के मार्ग के रूप में मनाना चाहिए। यह न केवल व्यक्तियों को नई संभावनाएं प्रदान करता है, बल्कि समाजों को भी मजबूत बनाता है।”

अमेरिका को ट्रम्प की नीतियों का दीर्घकालिक नुकसान भुगतना पड़ सकता है। प्रवासी अमेरिकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं, और उनके बिना इसकी प्रगति अधूरी रह सकती है। हालांकि, अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र में ऑटोमेशन के कारण श्रमिकों की मांग कम हो रही है, लेकिन प्रवासियों का योगदान केवल श्रम तक सीमित नहीं है। वे नवाचार, उद्यमशीलता और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए भी जिम्मेदार हैं।

प्रवासन मानव इतिहास का एक अटूट हिस्सा है। यह न केवल व्यक्तियों को नई संभावनाएं प्रदान करता है, बल्कि समाजों को भी समृद्ध और प्रगतिशील बनाता है। अमेरिका जैसे देश, जो प्रवासियों के बल पर खड़े हुए हैं, उन्हें इसकी कीमत समझनी चाहिए। प्रवासन पर प्रतिबंध लगाने से न केवल अमेरिका की अर्थव्यवस्था को लांग टर्म में नुकसान पहुंचेगा, बल्कि इसकी सांस्कृतिक विविधता और वैश्विक पहचान भी खतरे में पड़ सकती है।

लेखक के बारे में

बृज खंडेलवाल, (1972 बैच, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन,) पचास वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता और शिक्षण में लगे हैं। तीन दशकों तक IANS के सीनियर कॉरेस्पोंडेंट रहे, तथा आगरा विश्वविद्यालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान के पत्रकारिता विभाग में सेवाएं दे चुके हैं। पर्यावरण, विकास, हेरिटेज संरक्षण, शहरीकरण, आदि विषयों पर देश, विदेश के तमाम अखबारों में लिखा है, और ताज महल, यमुना, पर कई फिल्म्स में कार्य किया है। वर्तमान में रिवर कनेक्ट कैंपेन के संयोजक हैं।

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