1962 में रिलीज हुई फिल्म ‘साहिब, बीबी और गुलाम’ ने उस दौर में भारतीय सिनेमा में बोल्ड विषयों पर चर्चा की नींव रखी। फीमेल सेक्सुअलिटी और स्त्री की दबी इच्छाओं जैसे संवेदनशील विषयों को इस फिल्म में उकेरा गया। यह फिल्म न केवल एक कल्ट क्लासिक बनी, बल्कि इसने समाज की सोच को चुनौती भी दी।
फिल्म की पृष्ठभूमि
- यह फिल्म विमल मित्र के उपन्यास पर आधारित थी।
- निर्देशन की जिम्मेदारी अबरार अलवी ने संभाली, लेकिन फिल्म के हर पहलू में गुरु दत्त की छाप दिखाई देती है।
- 7 दिसंबर 1962 को रिलीज हुई इस फिल्म को शुरुआती दौर में दर्शकों और समीक्षकों से मिश्रित प्रतिक्रिया मिली।
छोटी बहू का किरदार: मीना कुमारी का असाधारण अभिनय
फिल्म की जान मीना कुमारी का ‘छोटी बहू’ का किरदार था।
- छोटी बहू का चरित्र एक ऐसी महिला का था, जो अपने पति का ध्यान खींचने के लिए समाज के नियमों को चुनौती देती है।
- फिल्म में उनके संवाद जैसे, “मर्दानगी की डींगे हांकने वाले छोटे बाबू नपुंसक हैं”, उस दौर के लिए बेहद साहसी माने गए।
बोल्ड सीन और सामाजिक विरोध
- छोटी बहू द्वारा अपने पति से शराब पीने की अनुमति मांगने या भूतनाथ की गोद में सिर रख देने जैसे दृश्यों ने समाज को झकझोर दिया।
- इन दृश्यों पर दर्शकों के विरोध के चलते फिल्म से इन्हें हटा दिया गया।
साहिब, बीबी और गुलाम: क्यों है यह एक कल्ट फिल्म?
- समाज से आगे की सोच:
यह फिल्म उस समय के भारतीय समाज में स्त्री के अधिकारों और इच्छाओं पर चर्चा करती है, जब इन विषयों पर बात करना भी वर्जित था। - शानदार अभिनय और निर्देशन:
- मीना कुमारी, गुरु दत्त, और रहमान जैसे कलाकारों के शानदार अभिनय ने इसे अद्वितीय बना दिया।
- फिल्म के सेट डिज़ाइन और सिनेमेटोग्राफी ने इसे सिनेमा के छात्रों के लिए अध्ययन का विषय बना दिया।
- संगीत और गीत:
- फिल्म का संगीत हेमंत कुमार ने तैयार किया, जबकि गीत शकील बदायूंनी ने लिखे।
- “न जाओ सैंया छुड़ा के बैयां” और “पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे” जैसे गीत आज भी अमर हैं।
गुरु दत्त की कलात्मकता
- गुरु दत्त ने भूतनाथ की भूमिका के लिए पहले शशि कपूर और विश्वजीत से संपर्क किया, लेकिन अंततः खुद इस किरदार को निभाया।
- छोटी बहू की भूमिका के लिए नर्गिस और छाया के नाम पर विचार हुआ, लेकिन अंततः यह भूमिका मीना कुमारी को मिली।
- फिल्म निर्माण के हर पहलू में गुरु दत्त की बारीकी और परफेक्शन झलकती है।
समाज में बदलाव का प्रतीक
‘साहिब, बीबी और गुलाम’ ने समाज को यह सोचने पर मजबूर किया कि स्त्री के अधिकार और इच्छाएं भी महत्व रखती हैं। आज यह फिल्म एक ऐसी धरोहर है, जिसे देखकर भारतीय सिनेमा की क्रांति को समझा जा सकता है।