आगरा कॉलेज में फर्जी नियुक्ति और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का मामला गरमाया हुआ है। प्राचार्य प्रो. अनुराग शुक्ला पर लगे आरोपों की जांच में उनके द्वारा 550 पन्नों का स्पष्टीकरण उत्तर प्रदेश शिक्षा आयोग की पांच सदस्यीय समिति को सौंपा गया है। अब सभी की नजरें आयोग के फैसले पर टिकी हुई हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
- निलंबन: फरवरी 2023 में शासन ने भ्रष्टाचार और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति के आरोप में प्राचार्य प्रो. अनुराग शुक्ला को निलंबित कर दिया था। उनकी जगह डॉ. सीके गौतम को कार्यवाहक प्राचार्य नियुक्त किया गया।
- आयोग की रिपोर्ट: कार्यवाहक प्राचार्य ने जांच कर शासन को रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें आरोप सही पाए गए थे। प्राचार्य द्वारा पक्ष न रखने पर आयोग ने रिपोर्ट को वैध माना।
- कानूनी प्रक्रिया: सितंबर 2023 में सीजेएम कोर्ट के आदेश पर फर्जी दस्तावेजों के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ। हालांकि, हाईकोर्ट से स्टे मिलने के बाद प्रो. अनुराग शुक्ला दोबारा प्राचार्य के पद पर आ गए।
550 पन्नों का स्पष्टीकरण और कॉलेज में चर्चा
प्रो. अनुराग शुक्ला ने 11 नवंबर को आयोग के सामने 550 पन्नों का विस्तृत स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया, जिसमें सभी आरोपों का खंडन किया गया है। उन्होंने दावा किया है कि उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज सही हैं और सभी सुबूत उपलब्ध कराए जा चुके हैं।
कॉलेज में स्थिति और संभावित परिणाम
कॉलेज में शिक्षकों और कर्मचारियों के बीच इस मुद्दे को लेकर चर्चाओं का माहौल है।
- आयोग का निर्णय: आयोग के फैसले के बाद प्राचार्य के भविष्य पर निर्णय होगा।
- कानूनी लड़ाई: यदि फैसला पक्ष में नहीं आता, तो प्रो. शुक्ला ने कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।
भ्रष्टाचार के आरोप और संभावित कार्रवाई
आरोपों में फर्जी दस्तावेजों के जरिए नियुक्ति और कॉलेज के निर्माण कार्य में वित्तीय अनियमितताएं शामिल हैं। इन आरोपों पर कोर्ट और आयोग दोनों स्तरों पर कार्यवाही जारी है।
आगे की राह
आयोग के निर्णय के बाद यह स्पष्ट हो पाएगा कि प्राचार्य का भविष्य क्या होगा। यदि आयोग स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं होता, तो कॉलेज प्रशासन में बड़े बदलाव संभव हैं। वहीं, प्रो. शुक्ला ने कानूनी विकल्पों को खुला रखा है।
इस प्रकरण ने आगरा कॉलेज में शैक्षणिक माहौल को प्रभावित किया है और सभी की निगाहें आयोग के फैसले पर हैं।