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आगरा: विरासत और उदासीनता का द्वंद्व

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“हेरिटेज वीक” का उद्देश्य है हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने और उनसे जुड़ाव को बढ़ावा देना। लेकिन आगरा जैसे ऐतिहासिक महत्व के शहर में यह पर्व उदासीनता के साये में बीत रहा है।

आगरा की विरासत और स्थानीय दृष्टिकोण

आगरा, जहां ताजमहल और अन्य मुगलकालीन स्मारक दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, वही स्थानीय लोग इन विरासतों से जुड़ाव महसूस नहीं करते। इन्हें अक्सर आर्थिक प्रगति में बाधा के रूप में देखा जाता है। 1996 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदूषण रोकने के लिए उद्योगों पर प्रतिबंध से लोगों में रोजगार के नुकसान की भावना गहराई।

विरासत से दूर होती पीढ़ी

  • यमुना नदी: कभी ऐतिहासिक जीवनरेखा रही यमुना आज प्रदूषण के साये में बह रही है।
  • कम लोकप्रिय स्मारक: ताजमहल की चमक के पीछे कई स्थापत्य रत्न गुमनामी में खोए हुए हैं।
  • अतिक्रमण और उपेक्षा: कई स्मारक संरक्षकों की लापरवाही और अतिक्रमण के चलते अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

विरासत और उदासीनता के कारण

  1. सांस्कृतिक जागरूकता की कमी: स्थानीय लोगों में अपनी विरासत को लेकर गर्व और जागरूकता की कमी है।
  2. आर्थिक दबाव: पर्यटन और आर्थिक मुद्दों के चलते लोग सांस्कृतिक महत्व को नजरअंदाज कर रहे हैं।
  3. संरक्षण प्रयासों की सीमाएं: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और स्थानीय निकाय सांस्कृतिक गतिविधियां बढ़ाने में असफल रहे हैं।

विरासत को बचाने का आह्वान

विरासत विशेषज्ञ डॉ. मुकुल पंड्या ने इसे “संचार की गहरी खाई” करार दिया। वे कहते हैं कि आर्थिक दबाव और रोजमर्रा के संघर्षों ने आगरा के नागरिकों को उनके गौरवशाली इतिहास से दूर कर दिया है।

संरक्षण के लिए सुझाव

  1. सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन: स्थानीय लोगों में गर्व और जुड़ाव बढ़ाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।
  2. विरासत संरक्षण की शिक्षा: स्कूलों और कॉलेजों में विरासत संरक्षण की शिक्षा अनिवार्य हो।
  3. स्थानीय पर्यटन का समर्थन: छोटे स्मारकों को प्रचारित कर स्थानीय पर्यटन को प्रोत्साहित किया जाए।

आगरा के निवासियों को यह समझना होगा कि उनकी समृद्ध विरासत केवल उनका अतीत नहीं, बल्कि उनकी पहचान और भविष्य का भी हिस्सा है। हेरिटेज वीक इस भावना को पुनर्जीवित करने का सही अवसर है।

About
Brij khandelwal

Brij Khandelwal is a senior journalist and environmentalist from Agra. He graduated from the Indian Institute of Mass Communication in 1972 and worked with prominent publications like Times of India, UNI, and India Today. He has authored two books on the environment and contributed thousands of articles to various newspapers. Khandelwal has been involved in saving the Yamuna River and is the national convener of the River Connect Campaign. He has taught journalism at Agra University and Kendriya Hindi Sansthan, for thirty years.

Khandelwal has appeared in documentaries by National Geographic, BBC, and CNN, plus a film The Last Paddle.

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