बिहार बंद की सियासत: ‘मां’ के सम्मान से शुरू हुआ आंदोलन, सड़कों पर बदसलूकी और वोट बैंक की खामोशी

पटना/जहानाबाद, शुक्रवार, 5 सितम्बर 2025, दोपहर 4:45 बजे IST

बिहार की राजनीति में एक बार फिर भावनाओं की लहर उठी — इस बार मुद्दा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां के सम्मान का। दरभंगा में कांग्रेस मंच से हुई अपशब्द टिप्पणी के विरोध में भारतीय जनता पार्टी ने 4 सितम्बर को बिहार बंद बुलाया। सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक चले इस बंद ने पूरे राज्य को झकझोर दिया — लेकिन सवाल यह है कि क्या इस बंद से BJP को राजनीतिक लाभ मिला या नुकसान?


जहानाबाद की घटना: एक शिक्षक के साथ बदसलूकी

जहानाबाद की दीप्ति रानी, एक स्कूल टीचर, 4 सितम्बर की सुबह अपने विद्यालय जा रही थीं। अरवल मोड़ पर BJP कार्यकर्ताओं ने उन्हें रोका, गाड़ी से उतारा और आगे जाने नहीं दिया। एक वायरल वीडियो में दो महिला कार्यकर्ता उनका हाथ पकड़कर ले जाती दिखीं। पुलिस मौके पर मौजूद थी, लेकिन हस्तक्षेप नहीं कर सकी।

यह दृश्य बिहार बंद की उस तस्वीर को सामने लाता है, जिसमें भावनात्मक मुद्दे की आड़ में आम नागरिकों को परेशान किया गया।


दरभंगा से शुरू हुआ विवाद

27 अगस्त को दरभंगा के सिमरी थाना क्षेत्र के बिठौली में कांग्रेस की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान मंच से प्रधानमंत्री मोदी की मां को अपशब्द कहे गए। वक्ता रिजवी नामक युवक था, जिसकी उम्र मात्र 20 वर्ष है। राहुल गांधी उस समय मंच पर मौजूद नहीं थे, लेकिन विवाद की चिंगारी वहीं से भड़की।

2 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “मेरी मां को गालियां दी गईं, यह केवल मेरी मां का नहीं, देश की मां-बहन-बेटियों का अपमान है।”


बंद का असर: हर जिले में सड़कों पर सियासत

बिहार बंद का असर राज्य के सभी 38 जिलों में दिखा। पटना में डाक बंगला चौराहा और इनकम टैक्स गोलंबर पर दो घंटे तक ट्रैफिक थमा रहा। नेशनल और स्टेट हाईवे बंद कर दिए गए। दुकानें जबरन बंद कराई गईं। गाड़ियां रोकी गईं। भागलपुर में पति-पत्नी से धक्का-मुक्की की गई। पटना हाई कोर्ट के जज की गाड़ी तक रोकी गई।

पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद इनकम टैक्स गोलंबर पर प्रदर्शन में शामिल हुए। लेकिन सवाल उठता है — क्या यह प्रदर्शन जनता के समर्थन में था या जनता के खिलाफ?


जनता की प्रतिक्रिया: सहानुभूति से नाराजगी तक

सीनियर पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, “PM मोदी की मां के लिए अपशब्द कहे जाने से लोगों में सहानुभूति थी। लेकिन BJP कार्यकर्ताओं की जबरदस्ती ने वह सहानुभूति खत्म कर दी। बंद से लोगों को परेशानी ही हुई।”

जहानाबाद की घटना के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं। लोग बोले — “मुद्दा बड़ा था, लेकिन तरीका गलत।”


बंद की रणनीति: क्या JDU के महिला वोट बैंक पर नजर?

राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद रंजन कहते हैं, “BJP ने यह बंद अपने कोर वोट बैंक को सक्रिय करने के लिए बुलाया था। ऐसे भावनात्मक मुद्दे दिल को छूते हैं। लेकिन इससे वोट बैंक पर असर नहीं पड़ेगा। शहरी और पढ़े-लिखे वर्ग पहले से BJP के साथ हैं।”

बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों पर आधारित रही है। पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग नीतीश कुमार के साथ है। प्रमोद रंजन मानते हैं कि “इस मुद्दे से JDU का महिला वोट बैंक BJP की ओर नहीं जाएगा।”


आम लोगों की राय: राजनीति का बोझ आम जनता पर

गोविंद मित्र रोड के दवा कारोबारी सुनील कुमार गुप्ता कहते हैं, “राजनीति में अपशब्द आम हैं। इस पर बिहार बंद करना गलत था। पब्लिक परेशान हुई।”

ऑटो चालक नथुनी शाह बोले, “बंद से नेताओं को फायदा होता है, हम जैसे लोगों को नुकसान।”

नौशाद अहमद ने कहा, “बंद से काम-धंधे पर जाने वाले लोग परेशान हुए। अच्छा होता कि गाली देने वाले की जांच होती।”


NDA की खामोशी: BJP अकेली दिखी मैदान में

बंद के दौरान BJP कार्यकर्ता सबसे ज्यादा सक्रिय रहे। JDU और अन्य NDA सहयोगी पार्टियां सड़कों पर कम दिखीं। प्रवीण वर्मा कहते हैं, “बंद के दौरान NDA की दूसरी पार्टियां सड़क पर नहीं दिखीं। बड़े नेताओं ने भी दूरी बनाए रखी।”

इनकम टैक्स गोलंबर पर हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और JDU के झंडे जरूर नजर आए, लेकिन नेतृत्व BJP के ही हाथ में रहा।


महिला वोट बैंक: नीतीश की योजनाओं का असर

बिहार में महिला वोट बैंक JDU का मजबूत आधार रहा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं की वोटिंग 60.4% रही, जबकि पुरुषों की 51%। नीतीश कुमार की योजनाओं ने इस वोट बैंक को मजबूत किया।

नीतीश सरकार की प्रमुख महिला केंद्रित योजनाएँ:

  1. जीविका दीदियों के लिए लोन पर ब्याज में कटौती
    3 लाख से अधिक के लोन पर ब्याज 10% से घटाकर 7% किया गया।
  2. जीविका कर्मचारियों की सैलरी दोगुनी
    ब्लॉक स्तर पर ₹50,000 और गाँव स्तर पर ₹25,000 सैलरी तय की गई।
  3. महिलाओं के रिजर्वेशन में डोमिसाइल पॉलिसी
    अब केवल बिहार की महिला अभ्यर्थियों को 35% आरक्षण का लाभ मिलेगा।
  4. आशा और ममता कार्यकर्ताओं का वेतन बढ़ाया गया
    आशा को ₹3,000 और ममता को हर डिलीवरी पर ₹600 मिलने लगे।
  5. सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि
    ₹400 से बढ़ाकर ₹1,100 प्रति माह कर दी गई। इससे 1 करोड़ 9 लाख लाभार्थी प्रभावित हुए।
  6. महिला केंद्रित बजट योजनाएँ
    पिंक टॉयलेट, पिंक बस, जिम ऑन व्हील्स, महिला हाट, कन्या मंडप, गर्ल्स हॉस्टल, ई-रिक्शा सब्सिडी जैसी योजनाएँ शामिल।

निष्कर्ष: भावनाओं की राजनीति या रणनीति की चूक?

बिहार बंद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है — क्या भावनात्मक मुद्दों को राजनीतिक हथियार बनाना जनता के हित में है? प्रधानमंत्री की मां के सम्मान की रक्षा के नाम पर बुलाया गया बंद, क्या वास्तव में सम्मान दिला पाया या जनता की नाराजगी का कारण बन गया?

राजनीति में भावनाएं जरूरी हैं, लेकिन जब वे आम नागरिक के जीवन को बाधित करने लगें, तो उनका मूल्यांकन भी जरूरी हो जाता है


Thakur Pawan Singh

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