Fri, 10 Oct 2025 05:28 PM IST, आगरा, भारत।
लोकतंत्र की निर्भीक योद्धा: मारिया कोरिना मचाडो
वेनेजुएला की मुख्य विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को नोबेल शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। यह घोषणा न केवल मचाडो के व्यक्तिगत साहस का सम्मान है, बल्कि यह वेनेज़ुएला में तानाशाही के ख़िलाफ़ जारी लोकतांत्रिक संघर्ष को भी एक वैश्विक पहचान देती है। मचाडो को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने में दिए गए योगदान के लिए वेनेजुएला में ‘आयरन लेडी’ के नाम से जाना जाता है।
नोबेल समिति ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि यह पुरस्कार उन्हें वेनेज़ुएला के लोगों के लिए लोकतांत्रिक अधिकार दिलाने में बिना थके काम करने और तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र के लिए न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण बदलाव लाने के लिए संघर्ष करने हेतु दिया जा रहा है। समिति ने उन्हें “शांति की बहादुर और समर्पित चैंपियन” बताया है, जो “बढ़ते अंधेरे (तानाशाही) के समय भी लोकतंत्र की रोशनी को जलाए रखती हैं।” मचाडो को टाइम पत्रिका की ‘2025 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों’ की सूची में भी शामिल किया गया था, जो उनके वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।

उत्पीड़न के बीच संघर्ष: छिपी हुई क्यों हैं मचाडो?
56 वर्षीय पूर्व सांसद और वर्तमान राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की लंबे समय से मुखर आलोचक रहीं मचाडो को उनकी बहादुरी की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। मादुरो सरकार के तहत उन्हें उत्पीड़न और बार-बार धमकियों का सामना करना पड़ा है। पिछले एक साल से, उन्हें छिपे हुए रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
उनकी यह स्थिति वेनेजुएला के राजनीतिक माहौल की भयावहता को दर्शाती है। पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में, मादुरो ने व्यापक रूप से धांधली की थी, जिसका मचाडो ने जमकर विरोध किया था। इसके बाद से ही उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है। नोबेल समिति ने इस दुविधा को स्वीकार करते हुए कहा कि जब अधिनायकवादी सत्ता हथिया लेते हैं, तो आजादी के उन साहसी रक्षकों को पहचानना बेहद जरूरी है जो उठ खड़े होते हैं और प्रतिरोध करते हैं। समिति ने इस पुरस्कार को आज़ादी के उन लोगों पर निर्भर बताया है जो चुप नहीं रहते और जो गंभीर जोखिम के बावजूद आगे बढ़ने का साहस करते हैं।
नोबेल समिति का बयान: लोकतंत्र के उपकरण शांति के उपकरण हैं
नोबेल समिति ने अपने बयान में मारिया कोरिना मचाडो के संघर्ष को लोकतंत्र और शांति के बीच के अटूट संबंध के रूप में प्रस्तुत किया है।
समिति ने कहा, “मारिया कोरिना मचाडो ने दिखाया है कि लोकतंत्र के उपकरण शांति के उपकरण भी हैं। वह एक अलग भविष्य की आशा का प्रतीक हैं, जहां नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाती है और उनकी आवाज सुनी जाती है।” नोबेल समिति ने वेनेजुएला में बने रहने के मचाडो के फैसले की सराहना की, जिसने लाखों लोगों को प्रेरित किया है, भले ही उनके सामने खतरे मौजूद थे।
नोबेल पुरस्कारों में से, शांति पुरस्कार ही एकमात्र पुरस्कार है जो ओस्लो, नॉर्वे में प्रदान किया जाता है। पुरस्कार समिति के अध्यक्ष जोर्गेन वाटने फ्राइडनेस ने पुरस्कार की घोषणा के बाद मचाडो की सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवालों पर भी अपनी राय रखी। उन्होंने माना कि यह पुरस्कार उनके सामने आने वाले जोखिमों को बढ़ा सकता है, लेकिन यह पुरस्कार उनके उद्देश्य का समर्थन करेगा, न कि उन्हें सीमित करेगा।
सत्तावादी शासन का पतन और मचाडो का प्रतिरोध
वेनेजुएला, जो कभी एक समृद्ध लोकतंत्र था, अब मादुरो के नेतृत्व में एक सत्तावादी शासन में बदल गया है। मादुरो की सरकार ने विरोधियों को जेल में डाल दिया है, प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया है और देश एक गंभीर आर्थिक पतन की ओर बढ़ रहा है। इस पतन के कारण लगभग आठ मिलियन (80 लाख) लोग देश छोड़कर भागने को मजबूर हो गए हैं, जिससे यह देश दुनिया के सबसे बड़े मानवीय संकटों में से एक बन गया है।
ऐसे निराशाजनक माहौल में, मचाडो का प्रतिरोध आशा की किरण बना हुआ है। उन्होंने दो दशक से भी अधिक समय पहले नागरिक समूह सुमाते की स्थापना की थी। इस समूह का उद्देश्य चुनावों पर नजर रखना और लोकतांत्रिक भागीदारी की वकालत करना था। सुमाते का कार्य वेनेजुएला के नागरिकों को जागरूक करना और उन्हें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करना रहा है।
चुनाव में अयोग्य ठहराया जाना: पश्चिमी सरकारों की निंदा
पिछले साल के राष्ट्रपति चुनाव में मचाडो को विपक्ष की प्राइमरी जीतने के बावजूद भाग लेने से रोक दिया गया था। उन्हें अयोग्य घोषित किए जाने के इस कदम की पश्चिमी सरकारों और मानवाधिकार समूहों ने कड़ी निंदा की थी। यह घटना वेनेजुएला में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हत्या का एक और उदाहरण थी।
अयोग्य घोषित होने के बावजूद, मचाडो ने हार नहीं मानी। उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार एडमंडो गोंजालेज उरुतिया का समर्थन किया, जिन्होंने स्वतंत्र मतगणना के अनुसार मादुरो को हराया था। हालांकि, मादुरो सरकार ने परिणाम को मान्यता देने से इनकार कर दिया और सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखी। मचाडो का यह कदम दर्शाता है कि उनका संघर्ष केवल चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वेनेज़ुएला में लोकतंत्र की बहाली के व्यापक लक्ष्य से जुड़ा हुआ है।
पुरस्कार समारोह और सुरक्षा की चुनौती
वर्तमान में छिपी हुई एक हस्ती को सम्मानित करने के निर्णय से उनकी सुरक्षा को लेकर तत्काल प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। यह पूछा गया कि क्या मचाडो दिसंबर में होने वाले पुरस्कार समारोह के लिए नॉर्वे की यात्रा कर पाएंगी? इस पर नोबेल समिति के अध्यक्ष रीस-एंडरसन ने कहा, “यह कहना अभी जल्दबाजी होगी।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि “यह एक गंभीर सुरक्षा स्थिति है, जिसे संभालना जरूरी है।”
पुरस्कार के घोषणा के बाद मचाडो का नाम वैश्विक स्तर पर और भी ऊँचा हो गया है। यह उम्मीद की जाती है कि यह अंतरराष्ट्रीय दबाव मादुरो सरकार पर कुछ हद तक नियंत्रण लगाने में सहायक होगा, जिससे वेनेजुएला में लोकतंत्र की बहाली का रास्ता खुल सके। नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने के बाद, मारिया कोरिना मचाडो अब आजादी के उन साहसी रक्षकों की वैश्विक पंक्ति में खड़ी हो गई हैं, जो अपने देश के लिए असाधारण जोखिम उठाते हैं।
उनका जीवन और संघर्ष यह सिखाता है कि आजादी को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए, बल्कि हमेशा उसकी रक्षा करनी चाहिए – शब्दों से, साहस से और दृढ़ संकल्प से। इस पुरस्कार ने वेनेजुएला के नागरिकों के बीच आशा और प्रतिरोध की भावना को और मजबूत किया है। वैश्विक समुदाय अब बेसब्री से इंतजार कर रहा है कि ‘आयरन लेडी’ कब सार्वजनिक रूप से सामने आकर अपना पुरस्कार स्वीकार करेंगी।
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संपादन: ठाकुर पवन सिंह | pawansingh@tajnews.in
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